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#DaughtersDay कभी ना समझी किसी ने एहमियत, क्या हो

#DaughtersDay  कभी ना समझी किसी ने एहमियत, क्या होती है बेटियाँ।
कभी माँ, कभी पत्नी, तो कभी बहन होती है बेटियाँ।
वो कभी नन्ही सी परी बन, काँधे पर तुम्हारे खेलती है। 
तो कभी बुढापे मे उंगली पकड, मार्गदर्शक बन जाती है।
वो हमेशा कन्धा मिलाकर चलती है,
असल मे पिता की शिक्षिका होती है बेटियाँ।
हर सही गलत को भली-भांति जानती है,
 क्या समझते हो! मूर्ख नही है बेटियाँ।
वो तुम्हारे बचपन मे माँ का नर्म स्पर्श है।
तो वही तुम्हारी भार्या बन, संग जिवन बिताती है।
देखता हूँ! सोचता हूँ! की क्या होती है बेटियाँ।
तो समझता हूँ! की स्वयं आदिशाक्ति है बेटियाँ।
अब समझे समाज भी एहमियत, कि क्या होती है बेटियाँ ।
क्या होती है बेटियाँ! क्या होती है बेटियाँ! "क्या होती है बेटियाँ"
#DaughtersDay  कभी ना समझी किसी ने एहमियत, क्या होती है बेटियाँ।
कभी माँ, कभी पत्नी, तो कभी बहन होती है बेटियाँ।
वो कभी नन्ही सी परी बन, काँधे पर तुम्हारे खेलती है। 
तो कभी बुढापे मे उंगली पकड, मार्गदर्शक बन जाती है।
वो हमेशा कन्धा मिलाकर चलती है,
असल मे पिता की शिक्षिका होती है बेटियाँ।
हर सही गलत को भली-भांति जानती है,
 क्या समझते हो! मूर्ख नही है बेटियाँ।
वो तुम्हारे बचपन मे माँ का नर्म स्पर्श है।
तो वही तुम्हारी भार्या बन, संग जिवन बिताती है।
देखता हूँ! सोचता हूँ! की क्या होती है बेटियाँ।
तो समझता हूँ! की स्वयं आदिशाक्ति है बेटियाँ।
अब समझे समाज भी एहमियत, कि क्या होती है बेटियाँ ।
क्या होती है बेटियाँ! क्या होती है बेटियाँ! "क्या होती है बेटियाँ"