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वो रात जंगल सी थी, लम्बी, घनी, काली रात । सपने जैस

वो रात जंगल सी थी,
लम्बी, घनी, काली रात ।
सपने जैसे टिमटिमाते जुगनू,
मानों जैसे तारों की बारात ।

डरता हूँ, इस रात को खोने से,
टिमटिमाते जुगनूओं के सोने से ।
रास आ गया मुझे रात का अंधेरा,
डरता हूँ, कल फिर सुबह होने से ।

न ज़माने की ख़बर,
न अपना कोई होश ।
यादों के पत्तों पर,
उम्मीदों की ओस ।

इस ओस सहारे ज़िन्दा हूँ,
बूँद-बूँद करके पी रहा हूँ ।
डरता हूँ, हकीकत की आँधी से, 
कतरा-कतरा ही तो जी रहा हूँ । "रात"
वो रात जंगल सी थी,
लम्बी, घनी, काली रात ।
सपने जैसे टिमटिमाते जुगनू,
मानों जैसे तारों की बारात ।

डरता हूँ, इस रात को खोने से,
टिमटिमाते जुगनूओं के सोने से ।
रास आ गया मुझे रात का अंधेरा,
डरता हूँ, कल फिर सुबह होने से ।

न ज़माने की ख़बर,
न अपना कोई होश ।
यादों के पत्तों पर,
उम्मीदों की ओस ।

इस ओस सहारे ज़िन्दा हूँ,
बूँद-बूँद करके पी रहा हूँ ।
डरता हूँ, हकीकत की आँधी से, 
कतरा-कतरा ही तो जी रहा हूँ । "रात"