विजय कुमार पाराशर,उपनाम "साखी" झूठे लोग झूठे लोग आज हर जगह पर बैठे है अपने लहूं को भी वो पानी कर बैठे है उनकी तो आत्मा मर गई है, मरने से पहले खुद को दफनाकर बैठे है उनको रात को नींद कैसे आ जाती है दूसरों की नींद को वो उड़ाकर बैठे है वो कुत्ता भी बड़ा हैरान है, क्या ग़जब ये झूठे इंसान है, लड़ाई,दंगा,आदि ये करते है नाम करते मेरा, बदनाम किसका नाम इन झूठे इंसानों से डरकर, कुते भी दुम दबाकर बैठे है इनका अंत बड़ा ही बुरा होगा जो ख़ुदा को भुलाकर बैठे है वो ख़ुद को खुदा समझ रहे है जिनके पास सिक्के खनक रहे है दूसरों के लहूं से प्यास बुझानेवाले आजकल प्याउँ लगाकर बैठे है वो ख़ुदा क्या इनको माफ़ करेगा, जो ख़ुदा को भी रुलाकर बैठे है झूठे लोग