दिल दिल होता है समंदर से भी गहरा और आकाश की तरह फैला हुआ। सिर्फ एक ही इंसा क्यूं समा सकता है इसमें सारा जहां। फिर क्यूं एक इंसा के न मिलने पर इस बेशकिमती दिल को तोड़कर लोग बेदिल बन जाते हैं। यह तो सरासर अन्याय है खुद के साथ और अपनों के साथ। फिर क्यूं