सरकारी स्कूल ................... पढ़ाई लिखाई होती नहीं है, दिन भर होती है मस्ती, शिक्षा के बदले मास्टर जी, करते हैं हरकत सस्ती। शिक्षा मंदिर बना हुआ, ठेकेदारों का बैठक खाना, खाली खोपड़ी का चले, बैठे बैठ ठहाके लगाना। ढंग का कुछ होता नहीं, सिरफिरों के बिगड़े रुल में, मम्मी हम न जाएंगे अब, जान खपाने स्कूल में। दलाल बने जबसे मास्टर, शिक्षा पड़ी है आफत में, अंधकार में लटका भविष्य, बच्चे सभी मुसीबत में। पीरियड पर पीरियड खाली, झांके न कोई क्लास में, बच्चे जो बुलाने जांयें, भौंके टीचर बदहवास में। उनके समझ में ना आए, डांट पड़ी किस भूल में, मम्मी हम न जाएंगे अब, जान खपाने स्कूल में। दिन भर में चार घंटे, कितनी मस्ती की ड्यूटी, ऊपर से छ: महीने, रहती साल भर में छुट्टी। पगार मिल जाता है, हर दफ्तर से ऊपर तीन गुना, और पुछता नहीं कोई, क्या बिगाड़ा है क्या बुना। खा जाते मीड डे मील, जो आता बच्चों के मूल में, मम्मी हम न जाएंगे अब, जान खपाने स्कूल में। इलेक्शन और सेंसस नामे, रोज मिल जाती छुट्टी, नेता और विधायक द्वारे, रोज लगाने जाते ड्यूटी। भैंस चराने, खेत जोतने में, रहते हैं वे हाजिर, बिना स्कूल गए हाजिरी, बनाने में है वे माहिर। उनके बच्चे पढ़ने जाते, इंटरनेशनल गुरुकुल में, मम्मी हम न जाएंगे अब, जान खपाने स्कूल में। सरकारें सो रही मगन, कानों में डाले मखमली रूई, राष्ट्र अधर में लटका है, रोवे उसकी किस्मत सोई। बच्चों के अभिभावक की, आफत में पड़ी जान है, क्या होगा उन बच्चों का, सूझे न कोई निदान है। ट्यूशन जुगाड़ में मास्टर, बच्चों का भविष्य शूल में, मम्मी हम न जाएंगे अब, जान खपाने स्कूल में। ©Tarakeshwar Dubey सरकारी स्कूल #Nature