हैरत होती है मुझे अक़्ल-ए-अक्लमंदों पर ख़ुदा को भूल कर मशगूल हैं काम धंधों पर। ये भी भूल गए कि सफऱ-ए-जिंदगी है महज़ कंधों से जमीं तक और जमीं से कन्धों पर। सफ़र-ए-हयात