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हैरत होती है मुझे अक़्ल-ए-अक्लमंदों पर ख़ुदा को भूल

हैरत होती है मुझे अक़्ल-ए-अक्लमंदों पर
ख़ुदा को भूल कर मशगूल हैं काम धंधों पर।
ये भी भूल गए कि सफऱ-ए-जिंदगी है महज़
कंधों से जमीं तक और जमीं से कन्धों पर। सफ़र-ए-हयात
हैरत होती है मुझे अक़्ल-ए-अक्लमंदों पर
ख़ुदा को भूल कर मशगूल हैं काम धंधों पर।
ये भी भूल गए कि सफऱ-ए-जिंदगी है महज़
कंधों से जमीं तक और जमीं से कन्धों पर। सफ़र-ए-हयात
ckjohny5867

CK JOHNY

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