चांद ढलने पे आ गया है रुख बदलने पे आ गया है कितनी ठोकर खाई है न जाने जो सभलने पे आ गया है यूं तो पत्थर ही हो चुका हूं पिछली ठोकरों से ही मैं और अब तुझको देखा तो लगा यूं दिल फिर पिघलने पे आ गया हैं..¡! ©battameez kalam #दुसरा_इश्क़