#OpenPoetry तिरंगा गा रहा अपना दर्द कि तोड़ दिया मुझे मेरे ही अपनों ने, किसी ने मुझसे छिन लिया भगवा तो कोई हरा लें गया और कोई आया तो मुझसे मेरा वजूद लें गया। तिरंगा गा रहा अपना दर्द कि मैं तो यहीं-कहीं खो गया। शांति का प्रतिक सफेद तो बस किताबों में रह गया। इस देश में तो हर कोई दंगई हो गया। कोई हिन्दू, कोई मुस्लिम तो कोई सिख बन गया। कुछ ना मिला बनने को तो हर कोई विदेशी बन गया। तिरंगा गा रहा अपना दर्द कि मैं तो बस शहीदों पर ही चढ़ गया। कोई मराठा, कोई जाठ तो कोई दलित बन गया। छेड़ दि जंग देश में और हर कोई आरक्षण पर भिड़ गया। तिरंगा गा रहा अपना दर्द कि मैं तो बस अकेला ही रह गया। #OpenPoetry #तिरंगा