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नौकरी इतनी आसान नहीं साहेब सुबह से आग की भट्टी-सा

नौकरी इतनी आसान नहीं साहेब
सुबह से आग की भट्टी-सा तपना पड़ता है साहेब
स्त्रीदार बुशर्ट की सिलवटें 
उसमें भी पसीने का सफ़ेद रंग
दिमाग को फटने से रोकना पड़ता है साहेब
प्रेमचंद की कहानियों से पंखे
उसमें भी फाइलों के निस्तारण का बोझ
न चाहकर भी कुर्सी में बैठना पड़ता है साहेब
नौकरी इतनी आसान नहीं साहेब
तपन में स्वमेव को ठंडा रखना
गुस्सा आने पर भी शर्बत-सा घूंट पीना
अण्डे-सा उबलने पर भी काम को करना पड़ता है साहेब

©Jitendra VIJAYSHRI Pandey "JEET "
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