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रजाई ------ चंदा डगर में ठिठुर कर बैठा, शीत से का

रजाई
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चंदा डगर में ठिठुर कर बैठा, शीत से कांप रहे सब सितारे।
पछुआ बयार बहती झंकझोर, बटोहिया जला रहे हैं अंगारे।
गगन से टीप टीप बूंदे टपके, तरु शिखाओं पर तुषार छाई।
मौसम में अब आ गई ठंडाई, देखो घर घर निकली रजाई।

फसलें खड़ी खेतों लहलहाए, देखि के खेतिहर हिय हर्षाये।
गाजर, मूली, पालक, सरसो, मेथी, छेमी, रहिला मन भाये।
बैठि मचानी रात अगोरत खेत, सगरे देह हाथ जाए कठुआई।
पूस की रतिया लेत अंगड़ाई, देखो घर घर निकली रजाई।

बच्चे जवान बूढ़े बोरसी तापें, कुहासे राह नहीं देवे दिखाई।
होते सांझ गगन ओले बरसावे, सफेदी में धरती जाए लिपटाई।
भरी जवानी में आदित ठिठुरत, बैरन बयार हाड़ देती कंपाई।
राम आगमन की बजी शहनाई, देखो घर घर निकली रजाई।

©Tarakeshwar Dubey रजाई

#farmersprotest
रजाई
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चंदा डगर में ठिठुर कर बैठा, शीत से कांप रहे सब सितारे।
पछुआ बयार बहती झंकझोर, बटोहिया जला रहे हैं अंगारे।
गगन से टीप टीप बूंदे टपके, तरु शिखाओं पर तुषार छाई।
मौसम में अब आ गई ठंडाई, देखो घर घर निकली रजाई।

फसलें खड़ी खेतों लहलहाए, देखि के खेतिहर हिय हर्षाये।
गाजर, मूली, पालक, सरसो, मेथी, छेमी, रहिला मन भाये।
बैठि मचानी रात अगोरत खेत, सगरे देह हाथ जाए कठुआई।
पूस की रतिया लेत अंगड़ाई, देखो घर घर निकली रजाई।

बच्चे जवान बूढ़े बोरसी तापें, कुहासे राह नहीं देवे दिखाई।
होते सांझ गगन ओले बरसावे, सफेदी में धरती जाए लिपटाई।
भरी जवानी में आदित ठिठुरत, बैरन बयार हाड़ देती कंपाई।
राम आगमन की बजी शहनाई, देखो घर घर निकली रजाई।

©Tarakeshwar Dubey रजाई

#farmersprotest