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रूह दी पतंग वह रुह दी पतंग बिछड़ ग


            रूह दी पतंग 
  वह रुह दी पतंग बिछड़ गए हैं अपने गगन से 
    वह रुह दी पतंग बिछड़ गई है उस रब से 
 रब थाम लो इस डोर को फिर अपने हाथों में
दे दो फिर से थोड़ी से जगह फिर से चरणों में 
ताकी ये रूह उस प्रेम रुपी अमृत को पा सकें।
 बरसादे दो रहमत एक बार फिर तुम   

 ताकी ये रुह दी पतंग फिर अपने गगन को मिलने निकल पड़े,
हे, रब थाम लो इस डोर को फिर अपने हाथों में
बरसादे दे रहमत एक बार फिर तुम  
ताकी ये रुह दी पतंग फिर अपने गगन को मिलने निकल पड़े।  #रुह दी पुकार# #रब- ए -इशक#

            रूह दी पतंग 
  वह रुह दी पतंग बिछड़ गए हैं अपने गगन से 
    वह रुह दी पतंग बिछड़ गई है उस रब से 
 रब थाम लो इस डोर को फिर अपने हाथों में
दे दो फिर से थोड़ी से जगह फिर से चरणों में 
ताकी ये रूह उस प्रेम रुपी अमृत को पा सकें।
 बरसादे दो रहमत एक बार फिर तुम   

 ताकी ये रुह दी पतंग फिर अपने गगन को मिलने निकल पड़े,
हे, रब थाम लो इस डोर को फिर अपने हाथों में
बरसादे दे रहमत एक बार फिर तुम  
ताकी ये रुह दी पतंग फिर अपने गगन को मिलने निकल पड़े।  #रुह दी पुकार# #रब- ए -इशक#
amansaini4040

Aman Saini

New Creator