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"प्रीत और पीड़ाएँ" प्रीत की पीड़ाएँ इधर उधर पहरे र

"प्रीत और पीड़ाएँ"
प्रीत की पीड़ाएँ
इधर उधर पहरे रखती हैं, 
जीने की जगह चिलमन 
के छिद्र जितनी, 
जिंदगी नांव बन जाती है
और कहीं से टूट जाती है 
फ़िर नित्य पानी ही पानी,
जब पीड़ा ह्रदय पर उलटती है, 
क़ायल हो जाते हैं प्रीत की
राह के राहग़ीर पीड़ाओं के, 
फ़िर इनके ज़हन में नशा 
चढ़ता है और आदतें भी, 
ख़ुमारी होती है तो फ़क़त 
मय पीकर सोने की, 
रुदनकर शय की, 
जीने की भूख और 
उपर से मृगतृष्णा,
यही हैं पीड़ा की अनुभूति। 
Khetdan charan #विचार #कविता #शायरी #कला #संगीत #हिंदी #साहित्य #प्रेम #राह
"प्रीत और पीड़ाएँ"
प्रीत की पीड़ाएँ
इधर उधर पहरे रखती हैं, 
जीने की जगह चिलमन 
के छिद्र जितनी, 
जिंदगी नांव बन जाती है
और कहीं से टूट जाती है 
फ़िर नित्य पानी ही पानी,
जब पीड़ा ह्रदय पर उलटती है, 
क़ायल हो जाते हैं प्रीत की
राह के राहग़ीर पीड़ाओं के, 
फ़िर इनके ज़हन में नशा 
चढ़ता है और आदतें भी, 
ख़ुमारी होती है तो फ़क़त 
मय पीकर सोने की, 
रुदनकर शय की, 
जीने की भूख और 
उपर से मृगतृष्णा,
यही हैं पीड़ा की अनुभूति। 
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