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नींद छोड़ आलस्य त्यागकर, उठो, जगो अब जोश भरो,

नींद छोड़ आलस्य त्यागकर, 
उठो, जगो अब जोश भरो,                         
ये आलिंगन का वक्त नहीं प्रिये! 
जा रण का उद्घोष करो।

वक्त देता है वक्त वक्त पर,
वह वक्त है अब आन पड़ा।
वक्त पर वक्त को जो न जाना,
वह नर होता मुर्ख बड़ा।
थाम कर हथियार हाथ में, 
अपनी नियति के साथ लड़ो।

रूप विकराल कर तिलक भाल, 
बाधा-विघ्नों का बन कर काल,
बीच समर में कूद पड़ो अब,
भुज विशाल ले खड्ग-ढाल।
करके प्रण घन सघन चीरकर,
गगन चुंबी परवाज़ भरो।

©Pankaj Pandey
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