जब से हम मुसाफ़िर हो गए किराए के मकां ही घर हो गए इतनी बार टूटा भरोसा हमारा खुदा पे यकीं नहीं काफिर हो गए कोई ठिकाना नहीं जहा सकूं मिले ऐसे भटके है दर-ब -दर हो गए साथ जिनके रहती थी चेहरे पे रौनक वो सारे दोस्त इधर उधर हो गए वो परिंदे जो आसमां तक उड़ते थे एक दफ्तर में कैद बिना पर हो गए ये हालात तुम्हे बंदर सा नचाएंगे इनके गुलाम तुम अगर हो गए सांप देने लगे है दुआए लोगो को आदमी जब से जहर हो गए ये मजहबों का मर्ज ऐसा फैला सारे इलाज बेअसर हो गए हमारी हर बात से वाकिफ थे जो वो लोग हमसे बेखबर हो गए ©jaggi #alone #ekgazal #गजल #Happiness