दिल देके हारे,हम इश्क़ कर के हारे कभी ज़माने से तो कभी दिलदार से हम हारे इतना भी सोचा नहीं के हम थे उनके ही सहारे ना इश्क़ मिला ना वो शख्स मिला,हम नसीबों के थे मारे दिल देके हारे,हम इश्क़ कर के भी हारे। के मिलने जैसा, वो कभी मिलता नहीं था बैठ के दो चार, प्यार वाली बातें करता नहीं था ना जाने किस बात का गुमान था उसको लगता था ऐसे हमसे ज्यादा उसपे मरता कोई और था। के हम तो नसीबों के थे मारे,जाते तो भला कहां जाते हमें तो अपना ही ठिकाना गैरों सा लगता था हम जीत कर भी करते क्या,जब थे अपनों से हारे दिल देके हारे,हम इश्क़ कर के भी हारे।। ♥️ Challenge-775 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।