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अब प्यार नहीं ...जरुरत बाकी है ! प्यार तो हो चुका

अब प्यार नहीं ...जरुरत बाकी है ! प्यार तो हो चुका ...! एक बार फिर लोगो के अनुरोध पर अवश्य पढ़े, मेरी एक सच्ची कहानी .............

बदलने_के_दौर_में_तुम_न_बदलना 


वर्ष २०१४ ग्वालियर के लिए निकल चुका था | लखनऊ स्टेशन के प्लेटफॉर्म नं० २ पर मैं अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था | अचानक घोषणा हुयी की ट्रेन १११२३ बरौनी-ग्वालियर मेल अपने निर्धारित समय से २ घंटे की देरी से प्लेटफॉर्म नं २ पर आने की सम्भावना है | मैं तो शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए सुबह ६ बजे ही निकल चुका था , ९:३० के लगभग मैं लखनऊ स्टेशन पहुंच चुका था | बरौनी-ग्वालियर मेल के आने का निर्धारित समय ११:५० था , मैं लगभग २:३० घंटे पहले ही लखनऊ स्टेशन पहुंच चुका था ऊपर से यह सुनकर की ट्रेन अपने निर्धारित समय से २ घंटे की देरी से आएगी , मैं हतप्रभ रह गया | मतलब अब ४:३० घंटे अकेले ... ट्रेन के इंतज़ार में बिताना , किसी बाहियात मूवी की तरह था जो आपको देखनी ही पड़ेगी क्यों की सिनेमा हाल में आप वह मूवी अपनी प्रेमिका के साथ देखने गए है , न चाहते हुए भी आपको कहना ही पड़ेगा ....निसंदेह , बेहतरीन फिल्म थी !!! 

मैंने अपने समय को व्यतीत करने के लिए प्लेटफॉर्म नं १ पर लगे बुक स्टाल का सहारा लिया ... कुछ देर तो तरह - तरह की बुक उठाकर उसका विश्लेषण किया कि यह बुक लूँ या वो लूँ .....!! आखिर आधे घंटे के विश्लेषण के पश्चात एक पुस्तक मैंने चुन ही ली " If It's Not Forever: It's Not Love '' by Durjoy Datta !!! अब मेरे पास ४ घंटे और बचे थे जिनको लखनऊ स्टेशन पर अकेले बिताना था ...सॉरी अकेले नहीं... अब मेरे पास एक साथी और था ..मैं और मेरी पुस्तक !! किसी ने सही कहा है , पुस्तकें व्यक्ति की सर्वश्रेष्ठ मित्र होती है !! किताब को हाथ में थामे ...प्लेटफॉर्म २ पर पहुंच चुका था !! किताब को पढते-पढ़ते ४ घंटे गुजार दिए मैंने ... फिर से घोषणा हुयी ...अब ट्रेन आने में कुछ मिनट ही बाकी थे !! ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंच चुकी थी ... S -6 कम्पार्टमेंट में मै प्रवेश पा चुका था ...| सीट पर बैठने के बाद मैंने अपनी नज़रे सामने ..दाए...बाए ...दौड़ाई ...परन्तु मनहूस किस्मत ...आस पास में भी कोई नहीं बैठा था ...वो सीट भी खाली थी !! ट्रेन चल पडी थी ....धक-धक-धक की आवाज़ करते हुए सरपट दौड़ी चली जा रही थी ...!!
अब प्यार नहीं ...जरुरत बाकी है ! प्यार तो हो चुका ...! एक बार फिर लोगो के अनुरोध पर अवश्य पढ़े, मेरी एक सच्ची कहानी .............

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वर्ष २०१४ ग्वालियर के लिए निकल चुका था | लखनऊ स्टेशन के प्लेटफॉर्म नं० २ पर मैं अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था | अचानक घोषणा हुयी की ट्रेन १११२३ बरौनी-ग्वालियर मेल अपने निर्धारित समय से २ घंटे की देरी से प्लेटफॉर्म नं २ पर आने की सम्भावना है | मैं तो शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए सुबह ६ बजे ही निकल चुका था , ९:३० के लगभग मैं लखनऊ स्टेशन पहुंच चुका था | बरौनी-ग्वालियर मेल के आने का निर्धारित समय ११:५० था , मैं लगभग २:३० घंटे पहले ही लखनऊ स्टेशन पहुंच चुका था ऊपर से यह सुनकर की ट्रेन अपने निर्धारित समय से २ घंटे की देरी से आएगी , मैं हतप्रभ रह गया | मतलब अब ४:३० घंटे अकेले ... ट्रेन के इंतज़ार में बिताना , किसी बाहियात मूवी की तरह था जो आपको देखनी ही पड़ेगी क्यों की सिनेमा हाल में आप वह मूवी अपनी प्रेमिका के साथ देखने गए है , न चाहते हुए भी आपको कहना ही पड़ेगा ....निसंदेह , बेहतरीन फिल्म थी !!! 

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