न जाने कब आँखों ही आँखों मे शरारत हो गई न जाने कब सासों में खूबसूरत खुशबू समा गई हमे पता ही ना चला कब हमे महोब्बत हो गई । उनकी निगाहों से घायल हुए इस कदर ,अब तो उनके सिवा और कोई ख्वाहिश ना रह गई। सुरूर - ए- इश्क का नशा हम पे ऐसा चढा की अब तो जिंदगी की आख़री वो साँस बन गई। लिखने बैठे जब उनकी सोख अदाओं को हम तो हमारी लिखावट ना जाने कब कैसे खूबसूरत कविता बन गई। बड़ा छुपाया अपनी राज ए महोब्बत को उनसे पर न जाने कब मेरी निगाहों में उसकी सूरत दिख गई । न जाने कब आँखों ही आँखों मे शरारत हो गई हमे पता ही न चला कब हमे महोब्बत हो गई। LoVeQoUtE204296 #lovelyword #234poem #kunu