ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी जो मैं भी रूठा तो सुब्ह तक तू सजी सजाई पड़ी रहेगी न तूने पहने जो अपने हाथों में मेरी इन उँगलियों के कंगन तो सोच ले कितनी सूनी सूनी तिरी कलाई पड़ी रहेगी हमारे घर से यूँ भाग जाने पे क्या बनेगा मैं सोचता हूँ मोहल्ले-भर में कई महीनों तलक दुहाई पड़ी रहेगी जहाँ पे कप के किनारे पर एक लिपस्टिक का निशान होगा वहीं पे इक दो क़दम की दूरी पे एक टाई पड़ी रहेगी हर एक खाने से पहले झगड़ा खिलाएगा कौन पहले लुक़्मा हमारे घर में तो ऐसी बातों से ही लड़ाई पड़ी रहेगी और अब मिठाई की क्या ज़रूरत मैं तुझ से मिल-जुल के जा रहा हूँ मगर है अफ़्सोस तेरे हाथों की रस मलाई पड़ी रहेगी मुझे तो ऑफ़िस के आठ घंटों से खौफ आता है सोच कर ये हमारे माबैन रोज़ बरसों की ये जुदाई पड़ी रहेगी जो मेरी मानो तो मेरे ऑफ़िस मैं कोई मर्ज़ी की जॉब कर लो कि हम ने क्या काम-वाम करना है कारवाई पड़ी रहेगी ~आमिर अमीर #Famous #Shayar