फ़िक़्रो नज़र का बन्द दरीचा अगर खुले बे इख्तियर जस्बये अर्ज़े हुनर खुले हुस्ने तलब में दीदये शोरीदा सर खुले क्या क्या ना मर्हले तेरे बीमार पर खुले जब हर्फ़े नरसा को मिला दर्से आगहि ज़ीना बाज़ीना जोहरे मानी के दर खुले दिल ने भी कि थी कुचाये जाना की आर्ज़ू चाहत के कारोबार में ज़ख्मे जिगर खुले मौसम का लम्स पाया तो कलियां चटक उठी दस्ते सबा के छूते ही खुशबू के पर खुले यू तो हैं गुल इज़ार बहुत पेकर्रे जमाल रन्गो का इम्तेजाज़ इस ही शोख़ पर खुले dr nafees taqi sironj ©Shariq N Taqi dr nafees taqi sironji #lightindark