ऊँची ईमारत कहानी उपशीर्षक में पढ़ें ।। बैंक के बड़े से गेट के बाहर निकलते ही त्यागी जी ने पहले दाएं देखा फिर बाएं और तेजी से भागते हुए अपनी चमचमाती काली BMW के अंदर जा घुसे,घबराते हुए उन्होंने ड्राइवर को कहा कि जल्दी गाड़ी घर की तरफ ले चलो,वो काले रंग के ब्रीफ़केस को खुद से दूर नहीं कर पा रहे थे और उसे ऐसे छाती से ऐसे चिपकाए बैठे थे जैसे एक माँ अपने नवजात शिशु को सीने से लगाये रखती है । लेकिन यह पहली बार तो ना था कि त्यागी जी बैंक गए थे,और यह पहली बार भी ना था कि वो पैसों से भरा ब्रीफ़केस बैंक से निकाल के ला रहे हो । लेकिन यह पहली बार जरूर था कि आज उनके चेहरे पर डर था, बेफिक्र मस्त मौला व्यक्तित्व रखने वाले त्यागी जी आज घबराये हुए थे,माथे पर पसीने को देखकर ड्राइवर से भी ना रहा गया और मानवता का फर्ज निभाते हुए उसने पूछ ही लिया "कोई परेशानी है सर" । झन्नाटे हुए त्यागी जी बोले "तुम गाड़ी चलाने में ध्यान दो" । लेकिन सवाल तो वही था कि यह डर कैसा था? दरअसल अपने त्यागी जी ने जब इस शहर में पांव रखा था तब दो ही चीजों ने उनका साथ दिया था , एक ज्योतिष "दुर्गेश महाराज" और दूसरा उनके हुनर ने, वो दुर्गेश महाराज की हर बात को आँख बंद करके मान लेते थे और उनका यही मानना था कि वो जो कुछ भी उनके जीवन मे है वो दुर्गेश महाराज की कृपा से है । यही कारण है कि वो दोनों पैरों में अलग रंग की जुराब पहनते है,उनके कर्मचारी उनकी इस आदत का मजाक भी बनाते है लेकिन पैसों के मामले में वो भी कुछ नहीं बोल पाते । दिल्ली शहर में आकर उन्होंने अपार संपत्ति बनाई,शहर के रिहायशी इलाकों में बंगले बनाये,गाड़ियाँ खरीदी । दशरथ कुमार त्यागी एस्टेट की दुनिया के राजा माने जाते है । करोडों की दौलत,एक सुंदर बीवी,एक नालायक लड़का दौलत बर्बाद करने के लिए इसके अलावा और क्या चाहिए एक अमीर आदमी को और यह सब त्यागी जी को मिला था श्री दुर्गेश महाराज की बदौलत,कम से कम उन्हें तो यही वहम था ।। आज सुबह आँख ढंग से खुली भी नहीं थी त्यागी जी की और दुर्गेश महाराज जी ने अपने बेस्ट क्लाइंट को यह कहते हुए डरा दिया कि पैसों के मामले में सचेत रहना,चोरी का पूरा आयोग है और जान भी जा सकती है, अब अपने त्यागी जी ठहरे बड़े व्यापारी जिन्हें आये दिन बैंक से पैसे डालने निकालने पड़ते है तो थी मजबूरी यह भी की पैसे निकालने भी जरूरी और चोर से पैसों को बचाना भी जरूरी ।