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ख़फ़ा-ख़फ़ा ज़िंदगी को, तुम देना दुआ सलाम। शायद कोई द

ख़फ़ा-ख़फ़ा ज़िंदगी को, तुम देना दुआ सलाम।
शायद  कोई  दुआ ही, अब आ जाए मेरे काम।

लाख कोशिश की मैंने, होंठों पे मुस्कान लाने की।
पर बिखरी कुछ इस तरह, कि फैली  रही तमाम।

यकीन रहा ना खुद पे, मायूसियों ने ऐसा घेरा।
ना रहा कोई हबीब मेरा, न मिला कोई मुकाम।

मैं सोच में डूबी रहती हूँ, क्या कोई  ख़ता हुई।
क्यूँ ख़ुशियों ने रुख मोड़ा, क्यूँ हुआ ये अंज़ाम।

झुकी-झुकी पलकें मेरी, इतनी बोझिल हो गई।
आँखों में दर्द समाया है, अब कैसे मिले आराम। ♥️ Challenge-670 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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ख़फ़ा-ख़फ़ा ज़िंदगी को, तुम देना दुआ सलाम।
शायद  कोई  दुआ ही, अब आ जाए मेरे काम।

लाख कोशिश की मैंने, होंठों पे मुस्कान लाने की।
पर बिखरी कुछ इस तरह, कि फैली  रही तमाम।

यकीन रहा ना खुद पे, मायूसियों ने ऐसा घेरा।
ना रहा कोई हबीब मेरा, न मिला कोई मुकाम।

मैं सोच में डूबी रहती हूँ, क्या कोई  ख़ता हुई।
क्यूँ ख़ुशियों ने रुख मोड़ा, क्यूँ हुआ ये अंज़ाम।

झुकी-झुकी पलकें मेरी, इतनी बोझिल हो गई।
आँखों में दर्द समाया है, अब कैसे मिले आराम। ♥️ Challenge-670 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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