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या तो मुझ में बात नही थी या उसमें जज़्बात नही थे

या तो मुझ में बात नही थी 
या उसमें जज़्बात नही थे 

या फिर मेरी किस्मत में ही 
लिखे इश्क के साथ नही थे 

सब कहते हैं क्यों ठुकराया 
वो बड़ी गज़ब की लड़की थी 

मैं उसको खुलकर अपनाता 
तब ऐसे हालात नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... 

वो बसंत सा खिली खिली थी 
कोयल सा गाती फिरती थी 

मुझ पर पतझर सा आया था 
लगते मुझमें पात नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... 

जिन हाथो की हस्त लकीरो 
में उसका मिलना लिखा था 

मेरे खुदा ने शायद मुझको बख्से ऐसे हाथ नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... स्वलिखित कविता
या तो मुझ में बात नही थी 
या उसमें जज़्बात नही थे 

या फिर मेरी किस्मत में ही 
लिखे इश्क के साथ नही थे 

सब कहते हैं क्यों ठुकराया 
वो बड़ी गज़ब की लड़की थी 

मैं उसको खुलकर अपनाता 
तब ऐसे हालात नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... 

वो बसंत सा खिली खिली थी 
कोयल सा गाती फिरती थी 

मुझ पर पतझर सा आया था 
लगते मुझमें पात नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... 

जिन हाथो की हस्त लकीरो 
में उसका मिलना लिखा था 

मेरे खुदा ने शायद मुझको बख्से ऐसे हाथ नही थे 

या तो मुझ में बात नही थी... स्वलिखित कविता
nitinkumar9907

Nitin kumar

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