ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्, ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं, ब्रह्म कर्म समाधिना।। जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात स्रुवा आदि भी ब्रह्म है और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है- उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाले योगी द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है। श्रीमद्भागवत गीता ४/२४ गीता ज्ञान भोजन मन्त्र