फ़ुर्सत तो निकालनी पड़ती है, यूँ फ़ुर्सत कभी मिलती नहीं, हिसाब रख देने लगे जो वक़्त, तो तन्हाई कभी टलती नहीं। क़रीब होके फ़ासले मीलों से,फ़ासलों में भी क़रीब दिलों से, गिन-गिन जैसा-तैसा किया जो तो हँसी कभी खिलती नहीं। किसी की मौत के बाद कैसे अच्छा-बुरा कहने चले आते हैं, ऐसे वक़्त के लिये मरने लगे, तो ज़िन्दगी कभी चलती नहीं। बाबाजी,क्या हो गर आप खिलौना समझ रखें ऐसा हिसाब? सोच-सोचके कल-कल करते, तो उम्मीद कभी पलती नहीं। सुनने-समझने की बात है 'धुन' कौन-कितना अपना-पराया, तेरा-मेरा करते रहते जो,तो मुश्क़िल हाथ कभी मलती नहीं। Rest Zone आज का शब्द - 'खिलौना' #rzmph #rzmph16 #restzone #खिलौना #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #poetry