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🌹🌻🌺🌹🥀🌺🌻 जाने कभी गुलाब लगती है जाने कभी शब

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जाने कभी गुलाब लगती है 
जाने कभी शबाब लगती है 
तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती है 
मैं पिए रहु या न पिए रहु,
लड़खड़ाकर ही चलता हु
क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती है....! 
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जाने कभी गुलाब लगती है 
जाने कभी शबाब लगती है 
तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती है 
मैं पिए रहु या न पिए रहु,
लड़खड़ाकर ही चलता हु
क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती है....! 
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