हर किसी को गले से लगाया है हमने उनके दुख दर्द में उनका साथ दिया हमने अपनी हर खुशी भी दाव पर हमने लगा दी बदले में सिर्फ़ बेरुखी ही पाई हमने // लेखन संगी // गैरों से नहीं बल्कि अपनों से ज़ख़्म पाए है हमने हर पहर जनाब बस गुलों से पत्थर खाए है हमने यूँ तो हमारा कोई न हुआ इतने बड़े जहाँ में यारों फिर भी हर एक से 'प्रदीप' रिश्ते निभाए है हमने © Pradeep Agrawal