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वो शाम को छत पे आना तेरा । ज़ुल्फों को रुख़ से हटाना

वो शाम को छत पे आना तेरा ।
ज़ुल्फों को रुख़ से हटाना तेरा।।
बेताब बोहत ही करता है 
शर्मा के नज़रें झुकना तेरा।।।
                           तेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियाँ
                            तेरे नयन जो काजल  वाले हैं।
                            मुझको भी पीलादे थोड़ी सी
                             भरपूर ये जाम के प्याले हैं।।
नज़रो से पिला दे तू जिसको
झूमे वो बनके दीवाना तेरा 
                वो शाम को छत पे.............
                 ज़ुल्फों को रुख से............

written By- Fahad Ansari written by - Fahad Ansari
वो शाम को छत पे आना तेरा ।
ज़ुल्फों को रुख़ से हटाना तेरा।।
बेताब बोहत ही करता है 
शर्मा के नज़रें झुकना तेरा।।।
                           तेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियाँ
                            तेरे नयन जो काजल  वाले हैं।
                            मुझको भी पीलादे थोड़ी सी
                             भरपूर ये जाम के प्याले हैं।।
नज़रो से पिला दे तू जिसको
झूमे वो बनके दीवाना तेरा 
                वो शाम को छत पे.............
                 ज़ुल्फों को रुख से............

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fahadansari1974

Fahad Ansari

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