#OpenPoetry मेरी मूफलसी ने मुझे बंजारा बना दिया जिंदगी ने मुझे आवारा बना दिया शाम चौराहे पे रात फूतपात पे गुजारी मेरे हालातो ने मुझे नाकारा बना दिया चहरे पे दाढ़ी बड़ी तन पे चद्दर फटी मेरी मजबूरियों ने मुझे बैचारा बना दिया कभी मंदिर मे कभी मस्जीद में बैठकर खाया मेरी किस्मत ने मुझे फकिरा बना दिया किसी की खुशी में खुश हो ना सका अपनी बदनसीबी पे रो ना सका वक्त ने मुझे लाचारा बना दिया sarla singh आवारा बना दिया