क्यूँ न अपनी व्यस्तायें बेचकर... सुकून के कुछ पल खरीद लूं..... कि थक गयी हूँ भागते - भागते... कुछ देर तो.... अब ठहर लूँ.......... कब दिन निकला... कब ढल गया.... अब तो इनके बीच का फासला देख लूँ... रोज़ की इस भागमभाग जिंदगी में....... अब तो कुछ पल चैन के जी लूँ........ थक चुकी हूँ अब इन साँसों का बोझ ढोते ढोते.... कि अब तो इन के कर्ज से मुक्त हो लूं.... क्यूं न अपनी व्यस्तायें बेचकर.... सुकून के कुछ पल खरीद लूं........ Shobha Gahlot... me and my sentiments..