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"खुशियों का ठिकाना ना रहा" मिली ज

"खुशियों का ठिकाना ना रहा"                  मिली जब पुराने दोस्त से,                    बातों का जैसे गुब्बारा सा फूल गया।       मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा।              जब चाय लेकर वह मेरे पास आई तो,पुराने यादों का फसाना सा याद आ गया। मिल कर उससे ऐसा लगा कि जैसे कल ही मिले थे। सारी परेशानियों को भूलकर, खुशियों का फसाना सा छा गया। मिली जब पुराने दोस्त से,                    बातों का जैसे गुब्बारा सा छा गया।          मेरी खुशियों ठिकाना ना रहा!!..

©Sarojani Srivastava
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