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ख़ुद को पीकर बैठा सागर ख़ुद से ही टकराता है लहरों

ख़ुद को पीकर बैठा सागर
ख़ुद से ही टकराता है
लहरों का ये गिरना उठना
यों तो तुम्हें लुभाता है
कितनी नदियों का पथश्रम
पीकर खारा हो जाता है
चट्टानों पर सिर धुनता है
कितनी चोटें खाता है
सहज किनारे बैठे बैठे
तुमको तो रस आता है
और हृदय में उसके तुम
ले आशा की नाव उतरते हो
भावों के उद्वेलन में बरबस
अपयश ही पाता है...
तुम बन जाते राम रमैया
वो भवसारा कहलाता है #toyou #yqsea #yqseeingthrough #yqreflection #yqpain #yq estrangement
ख़ुद को पीकर बैठा सागर
ख़ुद से ही टकराता है
लहरों का ये गिरना उठना
यों तो तुम्हें लुभाता है
कितनी नदियों का पथश्रम
पीकर खारा हो जाता है
चट्टानों पर सिर धुनता है
कितनी चोटें खाता है
सहज किनारे बैठे बैठे
तुमको तो रस आता है
और हृदय में उसके तुम
ले आशा की नाव उतरते हो
भावों के उद्वेलन में बरबस
अपयश ही पाता है...
तुम बन जाते राम रमैया
वो भवसारा कहलाता है #toyou #yqsea #yqseeingthrough #yqreflection #yqpain #yq estrangement