ख़ुद को पीकर बैठा सागर ख़ुद से ही टकराता है लहरों का ये गिरना उठना यों तो तुम्हें लुभाता है कितनी नदियों का पथश्रम पीकर खारा हो जाता है चट्टानों पर सिर धुनता है कितनी चोटें खाता है सहज किनारे बैठे बैठे तुमको तो रस आता है और हृदय में उसके तुम ले आशा की नाव उतरते हो भावों के उद्वेलन में बरबस अपयश ही पाता है... तुम बन जाते राम रमैया वो भवसारा कहलाता है #toyou #yqsea #yqseeingthrough #yqreflection #yqpain #yq estrangement