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हर साख पे उल्लू बैठा साख ये कैसा रहता जिस पर उ

 हर साख पे उल्लू बैठा 
 साख ये कैसा 
रहता जिस पर उल्लुओं का मेला 
जाने कैसा है ये किस्सा 
जिसे सबने सुना 
क्या है ये आँखोदेखा 
या है कोई राज ये गहरा 
कहता ग़ालिब हम सब से यहाँ 
एक उल्लू ही काफी 
बर्बाद करने को ये गुलिस्ता 
सोचो हो मंजर कैसा 
जब हर डाली पर उल्लुओं का कब्जा 
पर कुछ अजीब आज पता चला 
ये रहते दिन में भी यहाँ 
कभी ओढ़ जाति की चादर 
कभी कहते बदली आवो हवा 
करते नाटक ये सदा 
कहते खुद को गरीबों का मसीहा 
चूस कर खून जनता का 
सूखी हड्डी का देते तोहफा 
कहते कुछ दिल में कुछ और ही होता 
जैसे पहना हो कोई मुखौटा 
लड़ते एक-दूसरे से ऐसे 
जैसे हो कोई गली कुत्ता 
पर रात के अंधियारे में अक्सर 
मिल कर करते षड्यंत्र ये गहरा 
है ये हमारे पालन कर्ता 
जिनको बस खुद का पेट है भरना। OPEN FOR COLLAB✨ #ATmoonbg34
• A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ 

Collab with your soulful words.✨ 

• Must use hashtag: #aestheticthoughts 

• Please maintain the aesthetics.
 हर साख पे उल्लू बैठा 
 साख ये कैसा 
रहता जिस पर उल्लुओं का मेला 
जाने कैसा है ये किस्सा 
जिसे सबने सुना 
क्या है ये आँखोदेखा 
या है कोई राज ये गहरा 
कहता ग़ालिब हम सब से यहाँ 
एक उल्लू ही काफी 
बर्बाद करने को ये गुलिस्ता 
सोचो हो मंजर कैसा 
जब हर डाली पर उल्लुओं का कब्जा 
पर कुछ अजीब आज पता चला 
ये रहते दिन में भी यहाँ 
कभी ओढ़ जाति की चादर 
कभी कहते बदली आवो हवा 
करते नाटक ये सदा 
कहते खुद को गरीबों का मसीहा 
चूस कर खून जनता का 
सूखी हड्डी का देते तोहफा 
कहते कुछ दिल में कुछ और ही होता 
जैसे पहना हो कोई मुखौटा 
लड़ते एक-दूसरे से ऐसे 
जैसे हो कोई गली कुत्ता 
पर रात के अंधियारे में अक्सर 
मिल कर करते षड्यंत्र ये गहरा 
है ये हमारे पालन कर्ता 
जिनको बस खुद का पेट है भरना। OPEN FOR COLLAB✨ #ATmoonbg34
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Collab with your soulful words.✨ 

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