फूलों सी वो मेरे बगिया की शोभा है उसे तोड़ मुझे मुरझाना नहीं उसकी खुशबु से मैं महकता रहूँ मुझे इत्र खरीद कर लाना नहीं दिल के उपवन में मैं संबंधो को सींचता रहूँ मुझे गमलों मे फूलों को लगाना नहीं जंगल भी मंजूर हो अगर नियत साफ़ हो वनवासी मैं हो जाऊँ मगर राधा उसे बनाना नहीं ✒️नीलेश सिंह पटना विश्वविद्यालय ©Nilesh Singh #roseday