तुम बिन तुम मुझसे कभी ना रूठो, तुम बिन जिएंगे कैसे मर जायेंगे तड़पकर जल बिन मछली तड़पती जैसे सारे जहाँ की खुशियाँ अब मेरी तुझमें है समाई तपस्या किया मैं शिव सा तब जीवन में तू आई शिव जी ने विष पिया था हम विष पियेंगे कैसे तुम मुझसे कभी ना रूठो, तुम बिन जिएंगे कैसे । हर उत्सव मेरा तुझी से, तुमसे ही सारी खुशियाँ तुम बिन है व्यर्थ जीवन सूनी पड़ी है मेरी दुनिया हकीकत है क्या फ़साना किस्सा मेरी मुहब्बत का जब पूछता है ये ज़माना किस्सा मेरी मुहब्बत का अपनी प्रेम कहानी तुम बिन जग से कहेंगे कैसे तुम मुझसे कभी ना रूठो, तुम बिन जिएंगे कैसे । तुम बिन सुबह ना होती, मेरी ढलती नहीं है शामें जीवन तो जी रहे हैं मगर उधार चल रही है सांसे तुम साथ रहो तो लगता है पीछे काफिला खड़ा है तुम बिन भरी महफिल में दिल तन्हाई से भरा है जितने दर्द मिले हैं दिल को तुम बिन सिएंगे कैसे तुम मुझसे कभी ना रूठो, तुम बिन जिएंगे कैसे । धरती से लेकर अंबर, तक तुमको मैंने तलाशा सात समंदर पीकर भी खुद को पाया मैं प्यासा तुम बिन जीवन की मेरी नैया कैसे पार उतरेगी नयन आँसू तो सोंख लिए हैं लहू कब तक बहेगी अब तुम आकर मुझे हँसा दो तुम बिन हंसेंगे कैसे तुम मुझसे कभी ना रूठो, तुम बिन जिएंगे कैसे । ऋषि रंजन दरभंगा (बिहार) ©कवि ऋषि रंजन #lovebond #तुम_बिन