काग़ज़ की नाव बरसात के नालों में, चुरा के लाए वो आम पड़ोसियों के बगीचों से, वो निकल जाना साइकिल लेके , अनजान रास्तों पे, वो धूप में निकाल देना टीचर का, और हंसते हुए चले आना एक दूजे का। चुपके से खा जाना टिफिन दूसरों का, ना होता था कभी होमवर्क पूरा सा। नाम लेके एक दूसरे का घर से भागते थे, बहुत पिट ते सब , जब इकट्ठे फंसते थे। यूं स्टाइल में गैंग बना चले आना, कैसे बोला तूने मेरे दोस्त को? बोलके सबसे लड़ जाना। तूने नहीं किया तो मैं भी नहीं करूंगा, देख लेंगे कल , कोई हमारा क्या करेगा। मां भी अक्सर डांटती थी, दोस्तों के पीछे भागा रहता है, पर कहां मालूम था किसीको, ये दिल ही उनमें रहता है, एक को पसंद थी जलेबी , और दुकान पे सब पहुंच जाते थे, नाम से थोड़ी, सब अपने पिताजी के नाम से बुलाए जाते थे। स्कूल चला गया, कॉलेज बीता, कल तक जो अलमस्त थे, आज जिम्मेदारियों में चूर हैं, हैं तो आज भी जिंदा वो नादान सबमें पर अब सब मजबूर हैं। कल जहां कभी शामें सजती थीं आज वो इलाके सुनसान है, दोस्तों क्या बताऊं तुमको, सालों तुम बिन ज़िन्दगी कितनी बीरान है। #friendshipday #दोस्ती