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नादान हथिनी एक बेजुबां सी हथिनी थी, खुश

नादान हथिनी

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में,
लोगों का मन बहलाया करती थी।

आया एक वक़्त ऐसा भी,
          बीबीएक से दो वो होने वाले थे।
हर पल सपने देखा करती थी,
                  और देखें भी क्यों नहीं,                             एक नन्हीं जान जो आने वाली थी।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

एक दिन ऐसा आया,
         जब भूख ने उसे सताया,
वो सोची! मै तो भूखी रह जाऊंगी,               
                  बच्चे को कैसे भूखी रखूंगी
चल पड़ी घर छोड़ अपना,
                     खाने की तलाश में।

क्या खबर थी उसे,
         घर वापस आ ना पाएगी।
चलते चलते जा पहुंची वो,
                   इंसानों के घेरे में।
एक बेरहम ने भर बारूद ,
        अनानास उसे खिलाया था।
हुआ धमाका खाते ही
      ज़ख्मी सी वो तड़पी थी।
बेचैन  जा खड़ी हुई वो पानी में,
           हिम्मत ना हारी घंटों तक।
और हारे भी क्यों,
     जीने की चाह जो बाकी थी।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में,

था मंज़ूर नियति को कुछ और ही
         भगवान का बुलावा जो आया था।
रह के भी क्या करती हो
         इंसानियत ही क्या बची है।
हम उस दुनिया में रहते हैं
    जहां इंसान ही इंसान को नोचते है।
ए बेजुबां, नादान सी मेरी हथिनी
                    तुझको क्या ये बख्शेंगे?

 एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

जा खुश रह अब उस दुनिया में,
                  कोई ना तुझे सताएगा।
अब बस भी कर दो इंसानों
        दरिंदगी कब तक दिखाओगे। 
एक प्रश्न का तुम जवाब दो?
        उस बेजुंबा ने क्या बिगाड़ा था।
शायद इतनी सी थी खाता,
          खाने को तुझसे मांगा था।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

कर के भरोसा इंसानों पे,
      धोखा ही उसने पाया था।
एक हंसती खेलती ज़िन्दगी को,
             उन दरिंदों ने उज़ारा था।
बस इतना बता
           उस नादान ने तेरा क्या बिगाड़ा था?

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।
          -ARCHANA KUMARI
- #alone #bezunanzanwar #Nojoto
नादान हथिनी

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में,
लोगों का मन बहलाया करती थी।

आया एक वक़्त ऐसा भी,
          बीबीएक से दो वो होने वाले थे।
हर पल सपने देखा करती थी,
                  और देखें भी क्यों नहीं,                             एक नन्हीं जान जो आने वाली थी।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

एक दिन ऐसा आया,
         जब भूख ने उसे सताया,
वो सोची! मै तो भूखी रह जाऊंगी,               
                  बच्चे को कैसे भूखी रखूंगी
चल पड़ी घर छोड़ अपना,
                     खाने की तलाश में।

क्या खबर थी उसे,
         घर वापस आ ना पाएगी।
चलते चलते जा पहुंची वो,
                   इंसानों के घेरे में।
एक बेरहम ने भर बारूद ,
        अनानास उसे खिलाया था।
हुआ धमाका खाते ही
      ज़ख्मी सी वो तड़पी थी।
बेचैन  जा खड़ी हुई वो पानी में,
           हिम्मत ना हारी घंटों तक।
और हारे भी क्यों,
     जीने की चाह जो बाकी थी।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में,

था मंज़ूर नियति को कुछ और ही
         भगवान का बुलावा जो आया था।
रह के भी क्या करती हो
         इंसानियत ही क्या बची है।
हम उस दुनिया में रहते हैं
    जहां इंसान ही इंसान को नोचते है।
ए बेजुबां, नादान सी मेरी हथिनी
                    तुझको क्या ये बख्शेंगे?

 एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

जा खुश रह अब उस दुनिया में,
                  कोई ना तुझे सताएगा।
अब बस भी कर दो इंसानों
        दरिंदगी कब तक दिखाओगे। 
एक प्रश्न का तुम जवाब दो?
        उस बेजुंबा ने क्या बिगाड़ा था।
शायद इतनी सी थी खाता,
          खाने को तुझसे मांगा था।

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।

कर के भरोसा इंसानों पे,
      धोखा ही उसने पाया था।
एक हंसती खेलती ज़िन्दगी को,
             उन दरिंदों ने उज़ारा था।
बस इतना बता
           उस नादान ने तेरा क्या बिगाड़ा था?

एक बेजुबां सी हथिनी थी,
          खुश थी वो अपनी ज़िंदगी में।
          -ARCHANA KUMARI
- #alone #bezunanzanwar #Nojoto
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Archana Raj

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