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मेरे ख्वाहिशों का शहर डूबा जा रहा है , जो देखे थे

मेरे ख्वाहिशों का शहर डूबा जा रहा है ,
जो देखे थे सपने बचपन में वो मेरे ही हाथों
टूटा जा रहा है, 
सोचा जब बड़े होंगे तब जिंदगी आसान कर लेंगे ,
आज जितना बुरा है कल हम खुद को संवार लेंगे,
ना जाने क्यूँ तब बड़े होने का इतना शौक क्यूँ था,
ना जाने मुझमें सुलझने का इतना होड़ क्यूँ था,
अब वक्त ने मुझे बिल्कुल अकेला छोड़ा है ,
सिर्फ गैरों ने नहीं अपनो ने भी बड़े बेरुखी से तोड़ा है,...!!

©kajal kannaujiya
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