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सब बदल गया(लघुकथा) कैप्शन में पढ़े👇 सब बदल गया (लघ

सब बदल गया(लघुकथा)
कैप्शन में पढ़े👇 सब बदल गया (लघुकथा)

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हाईवे पर काफी भीड़ जमा थी। शायद कोई दुर्घटना हो गई थी। सब मदद करने के स्थान पर फ़ोन से वीडियो बना रहे थे। सामने से इस ओर ही आ रही कार में बैठे पिता(सखराम अग्रवाल) शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी और उनकी विवाहित पुत्री(रमा) ने यह दृश्य देखा।
रमा बोली-"चलिए पापा! देखें,क्या हुआ है?"

 सखराम ने अपनी पुत्री को घूरा और यह कहते हुए बात कांट दी औऱ कहा "हमें नहीं पड़ना इन पचड़ों में। हम बिजनेसमैन हैं और बिजनेस में प्रत्येक क्षण अत्यंत मूल्यवान होता है।"
रमा ने मानवीयता का तर्क दिया किन्तु व्यापारी सखाराम ने उपेक्षा से कंधे उचकाते हुए कहा-"क्या हमने ही दूसरों की मदद करने का ठेका लिया है?और भी बहुत हैं मदद करने वाले।"
सब बदल गया(लघुकथा)
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हाईवे पर काफी भीड़ जमा थी। शायद कोई दुर्घटना हो गई थी। सब मदद करने के स्थान पर फ़ोन से वीडियो बना रहे थे। सामने से इस ओर ही आ रही कार में बैठे पिता(सखराम अग्रवाल) शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी और उनकी विवाहित पुत्री(रमा) ने यह दृश्य देखा।
रमा बोली-"चलिए पापा! देखें,क्या हुआ है?"

 सखराम ने अपनी पुत्री को घूरा और यह कहते हुए बात कांट दी औऱ कहा "हमें नहीं पड़ना इन पचड़ों में। हम बिजनेसमैन हैं और बिजनेस में प्रत्येक क्षण अत्यंत मूल्यवान होता है।"
रमा ने मानवीयता का तर्क दिया किन्तु व्यापारी सखाराम ने उपेक्षा से कंधे उचकाते हुए कहा-"क्या हमने ही दूसरों की मदद करने का ठेका लिया है?और भी बहुत हैं मदद करने वाले।"