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उलझनों के भंवर में , उलझे इस कदर हैं जहां देखें वह

उलझनों के भंवर में ,
उलझे इस कदर हैं
जहां देखें वहीं उलझनों के गहरे समंदर हैं।
उलझनों में कुछ इस तरह सिमट गए हैं हम 
लगता है जैसे हम खुद उलझनों के सबसे बड़े सिकंदर हैं।
 उलझनों के भंवर में खो दिया है कहीं हमने खुद को,
क्यूं ना पा ले हम खुद को ,वही बेहतर है
क्यूं की ज़िंदगी के हर सवाल में उलझनों के ही मडराते बवंडर हैं।

©Labhanshi Agrawal #poetries 

#poetry

#उलझने 

#DilKiAwaaz
उलझनों के भंवर में ,
उलझे इस कदर हैं
जहां देखें वहीं उलझनों के गहरे समंदर हैं।
उलझनों में कुछ इस तरह सिमट गए हैं हम 
लगता है जैसे हम खुद उलझनों के सबसे बड़े सिकंदर हैं।
 उलझनों के भंवर में खो दिया है कहीं हमने खुद को,
क्यूं ना पा ले हम खुद को ,वही बेहतर है
क्यूं की ज़िंदगी के हर सवाल में उलझनों के ही मडराते बवंडर हैं।

©Labhanshi Agrawal #poetries 

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#DilKiAwaaz