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कोशिश जारी है मैं तुम्हें शुरू से सोच रही हूँ मैं

कोशिश जारी है

मैं तुम्हें शुरू से सोच रही हूँ
मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में हूँ, 
कैसे हम मिले, क्यों देर से मिले,
हमने क़िस्मत से की थी शिकायतें देर रातों तक,
आज उन शिकायतों में, शामिल ख़ुद मैं हूँ

आज जब मैं हम दोनों के बारे में सोचती हूँ तो तुम चाँद और मुझे मैं धरा सी लगती हूँ, जो एक समानांतर रेखा पर अनंत तक चलते रहेंगे लेकिन जब पीछे पलट कर अतीत के आईने में देखती हूँ तो हम क्षितिज पर मिल रहे होते हैं। वही क्षितिज जिसे गुमने दूर से कभी हाथ में हाथ डाले समंदर किनारे निहारा करते थे। तुम्हारी बातें, वादे, तुम्हारे हाथों से झड़काई हुई रेत, तुम्हारे गालों में चिपका वो खारापन जो हवा हमें एक साथ दे गई थी, मैं वो सब समेट लायी थी अपने दुपट्टे में, लेकिन बहुत कुछ रह भी गया था वहाँ, कभी जाओ वहाँ दोबारा तो देखना लिखा है क्या किसी नमक की किसी डल्ली पे हमारा नाम। 

हमारे हरेक लमहों को मिटाने में हूँ,
मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में हूँ

इस कोशिश में सब भूल जाने का मन करता है, ख़ुद को इतना भुला दूँ की मेरी हर साँस भी ठिठक कर आये। अजनबीपन पहन कर मैं बाहर निकलूँ और चाँद, तारे, दिन और दिनकर सब हक्के-बक्के रह जायें मुझे देख कर।

जब जहाँ से लोग मुझे पहचाना बंद कर देंगे
तब वहाँ से मैं ख़ुद को नया बनाऊँगी। 

#SAR #hindipoetry #booklover #newpost

©sumi. #Tulips
कोशिश जारी है

मैं तुम्हें शुरू से सोच रही हूँ
मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में हूँ, 
कैसे हम मिले, क्यों देर से मिले,
हमने क़िस्मत से की थी शिकायतें देर रातों तक,
आज उन शिकायतों में, शामिल ख़ुद मैं हूँ

आज जब मैं हम दोनों के बारे में सोचती हूँ तो तुम चाँद और मुझे मैं धरा सी लगती हूँ, जो एक समानांतर रेखा पर अनंत तक चलते रहेंगे लेकिन जब पीछे पलट कर अतीत के आईने में देखती हूँ तो हम क्षितिज पर मिल रहे होते हैं। वही क्षितिज जिसे गुमने दूर से कभी हाथ में हाथ डाले समंदर किनारे निहारा करते थे। तुम्हारी बातें, वादे, तुम्हारे हाथों से झड़काई हुई रेत, तुम्हारे गालों में चिपका वो खारापन जो हवा हमें एक साथ दे गई थी, मैं वो सब समेट लायी थी अपने दुपट्टे में, लेकिन बहुत कुछ रह भी गया था वहाँ, कभी जाओ वहाँ दोबारा तो देखना लिखा है क्या किसी नमक की किसी डल्ली पे हमारा नाम। 

हमारे हरेक लमहों को मिटाने में हूँ,
मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में हूँ

इस कोशिश में सब भूल जाने का मन करता है, ख़ुद को इतना भुला दूँ की मेरी हर साँस भी ठिठक कर आये। अजनबीपन पहन कर मैं बाहर निकलूँ और चाँद, तारे, दिन और दिनकर सब हक्के-बक्के रह जायें मुझे देख कर।

जब जहाँ से लोग मुझे पहचाना बंद कर देंगे
तब वहाँ से मैं ख़ुद को नया बनाऊँगी। 

#SAR #hindipoetry #booklover #newpost

©sumi. #Tulips