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कलम बनी तलवार ✒••••••○○○○•••••🗡 बर्दाश्त की हर स

कलम बनी तलवार
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बर्दाश्त की हर सीमा अब 'पार' हो रही है।
दबी हुई सी आवाज़ में भी अब तेज़ 'धार' हो रही है।
ठगते हैं इंसान, इंसानियत का "मुखौटा" पहनकर,
 इंसान को ही।
तभी तो "क़लम" भी मेरी अब "तलवार" हो रही है। #मुखौटा
कलम बनी तलवार
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बर्दाश्त की हर सीमा अब 'पार' हो रही है।
दबी हुई सी आवाज़ में भी अब तेज़ 'धार' हो रही है।
ठगते हैं इंसान, इंसानियत का "मुखौटा" पहनकर,
 इंसान को ही।
तभी तो "क़लम" भी मेरी अब "तलवार" हो रही है। #मुखौटा