कितना अभागा हूं मै। कितना अभागा हूं। मेरा जीवन खुली किताब रहा। पर मुझे आज तक कोई पढ़ नहीं सका। मैंने संस्कारो और सिध्दांतो को अपने जीवन हिस्सा बनाया। पर दुःख इन्हीं सिध्दांतो और संस्कारों के कारण मिला। मेरी सरलता ही मेरी कमजोरी बनी। मेरी मधुरता ही मेरी सत्रु बनी। सम्मान देने की आदत मैंने सम्मान पाने के लिए डाली, पर बदले में अपमान और दुत्कार ही मिला। जिस सेवा भाव को मैंने में को शांति देने के लिए अपनाया,वहीं हमें अशांत करता गया। विचारों और भानाओं से लोगो को संतुष्ट करना चाहा ,पर लोगो ने इसे भी झूठा समझा। जिन्हें अच्छासमझता हूं ,सम्मान करता हूं ,वहीं हमें दुख देने पर तुले रहते है। चुप रह कर ,बुरी बातों को सह लेने को लोग मेरी कमजोरी समझ लेते है। सत्य को तुरंत बोलने पर नाराज हो जाते है। कुछ लोग हमें छोड़ गए ,और कुछ छोड़ जाने को बोलते है। आखिर ऐसे संस्कार हमारे मा बाप ने हमें क्यों दिया। क्यों किया इन निठुर सिध्दांतो के हवाले,जिन्हें आज के लोगो के लिए समझना कठिन है। आज के लोगो के बीच मुझे इन संस्कारों के साथ होने पर घुटन होती है। पर मै इन्हे छोड़ नहीं सकता क्यों की अब ये हमारी आदत बन गए है। इस लिए मेरा ये जीवन व्यर्थ है। मै अभागा था,हू,और मृत्यु तक रहूंगा। #abhaga hu.