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बचपन की वो रात भी क्या रात होती थी जब कच्चे मकानों

बचपन की वो रात भी क्या रात होती थी
जब कच्चे मकानों की छतों पर दादी
 नानी की कहानी और मां की गोदीहोती 
 बचपन कीउस रात की बात करते
जब लाइट से चलने वाले पंखे नहीं हो
 जब हाथ के पंखी से मां हवा करतीं थीं
रात में गर्मी के मौसम में जब गर्मी लगती
पेड़ो को हवा करे ऐसी  प्रार्थना करते थे
जब डरावनी रात की बात हो तो पीपल के
  पत्तों की आवाज़ से डर जाया करते थे
जब डर लगता तो मां अपने आंचल में
हम बच्चो को छुपा लिया करती थी
जब साय साय की आवाजें आती थी
सुबह उठ कर रात की बात होती थी

©Chandrawati Murlidhar Sharma उन दिनों की रात की बात # रात की बात
बचपन की वो रात भी क्या रात होती थी
जब कच्चे मकानों की छतों पर दादी
 नानी की कहानी और मां की गोदीहोती 
 बचपन कीउस रात की बात करते
जब लाइट से चलने वाले पंखे नहीं हो
 जब हाथ के पंखी से मां हवा करतीं थीं
रात में गर्मी के मौसम में जब गर्मी लगती
पेड़ो को हवा करे ऐसी  प्रार्थना करते थे
जब डरावनी रात की बात हो तो पीपल के
  पत्तों की आवाज़ से डर जाया करते थे
जब डर लगता तो मां अपने आंचल में
हम बच्चो को छुपा लिया करती थी
जब साय साय की आवाजें आती थी
सुबह उठ कर रात की बात होती थी

©Chandrawati Murlidhar Sharma उन दिनों की रात की बात # रात की बात

उन दिनों की रात की बात # रात की बात