किनारे ठहरे रहे... नदी बह गयी....बहती गयी... राह ठहरी रही.... राहगीर बढ़ते गये.... तटों में ठहराव है.... तभी नदी का अस्तित्व है... राह जानती है ठहरना.... तभी राही बढ़ पाते हैं आगे.... पेड़ ठहरे हैं एक जगह.... तभी मिलती है छाँव.... जब बादल ठहर जाते हैं आसमान में.... मिलती है तब बारिश... फसल की ज़मीन कुछ समय ख़ाली छोड़ देने से उपजाऊ ही होती है... प्रकृति के पास ठहराव भी है और गतिशीलता भी.... इन दोनों का सामंजस्य ही सृष्टि को जीवन देता है.... ठहराव जीवन की रफ़्तार कम नहीं करता हर बार.... कभी-कभी जीवन के लिए ठहर जाना भी ज़रूरी होता है ! - ©अनुपमा विन्ध्यवासिनी #writingsofanupma #lockdown #nojotopoetry #nojoto