मेरी चेतना लकवाग्रस्त हो चुकी है और किसी भी परिस्थिति के प्रत्युत्तर में देने के लिए मुझमें केवल बस मुस्कुराहट शेष बची रह गई है जो मुझे किसी ब्लैकहोल की तरह निगलती जा रही निगलती जा रही । अर्थात जिस मुस्कुराहट को कुछ लोग मेरी विशेषता बता रहे दरअसल वो बस मजबूरी में चुना गया मेरे अपघटन का एक क्रिया है।। पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े । मुझे जहाँ व्यवहारिक होना था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया । मुझे जहाँ रोना चाहिए , चिखना चिल्लाना चाहिए था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया मुझे जहाँ उदास व्याकुल होना था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया । मुझे जहाँ छाती पीट-पीट कर मातम मनाना था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया ।