जला दिया तूने आशियाना मेरा उसी वतन की बस्ती हूँ मिटाने से जो मिट न सकी मैं वो हिन्द की हस्ती हूँ । उगल न सका जो ज़हर वहशी, उसके दिल का हसरत हूँ । सदियों से चलायी गई जुल्मोंसितम का एक हकीकत हूँ । देखा जो हमने मुहब्बत की नज़र से उसने कहा तुम नफ़रत हो क्या करूँगा पहचान छुपाकर अपनी, कायनात का फितरत हूँ बिगड़ जाये सामंत का काम मैं बिगड़ी हुई उसकी किस्मत हूँ । जब ना मिले कुसूर कोई उसकी लगायी हुई मैं तोहमत हूँ । फोड़ सका न किसी के स़र ठिकड़ा , मैं बलि का बकरा हूँ । मिट न सके जो गालों पर आँसू मैं वो आँसू का क़तरा हूँ । नफ़रत जो बेवजह करते हैं हमसे बस उसकी ये फितरत है । जिन्दा हूँ सख्त कानून की वजह से बस बाबा की रहमत है । जला दिया तूने आशियाना मेरा उसी वतन की बस्ती हूँ । मिटाने से जो मिट न सकी मैं वो हिन्द की हस्ती हूँ ।