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बिन बनाए ख्वाबों का घर नहीं बनता, बैठने से मुकद्दर

बिन बनाए ख्वाबों का घर नहीं बनता,
बैठने से मुकद्दर नहीं बनता,
यूंही बीत जाते हैं हर लम्हे,
सोने से कोई पैकर नहीं बनता,
जगना पड़ता है,ख्वाबों की खातिर,
ख्वाबों में हकीकत का मंज़र नहीं बनता,
बड़ी दर्द देती हैं मंज़िल की राहें,
मगर बिना चोट के खंजर नहीं बनता।। bin banaye khabon ka ghar nhi Banta
बिन बनाए ख्वाबों का घर नहीं बनता,
बैठने से मुकद्दर नहीं बनता,
यूंही बीत जाते हैं हर लम्हे,
सोने से कोई पैकर नहीं बनता,
जगना पड़ता है,ख्वाबों की खातिर,
ख्वाबों में हकीकत का मंज़र नहीं बनता,
बड़ी दर्द देती हैं मंज़िल की राहें,
मगर बिना चोट के खंजर नहीं बनता।। bin banaye khabon ka ghar nhi Banta