सामने जब हो डगर, मन पर हो विजय गर, लक्ष्य पर हो नजर, तू हो निडर, हो निडर, आसमां जब छोटा लगे, पंख भी उड़ने लगे, हिम्मत भी बढ़ने लगे, तो बादलों पर तू उतर, तू हो निडर, हो निडर, तूफ़ान भी रुक जायेगा, समुंदर भी झुक जायेगा, किश्ती को किनारा मिल पाएगा, तो पतवार को थामे तू बढ़, तू हो निडर, हो निडर, पतझड़ को रोक देंगे, पत्तों को टूटने से रोक लेंगे, सावन को जेठ की गर्मी से भिगो देंगे, तो उम्मीद का दामन, थामे तू चल, तू हो निडर, हो निडर, अंधेरा भी मिट जायेगा, रात, उजाला बन जायेगा, किसी एक को जीना रास आएगा, तो मशाल को थामे तू चल, तू हो निडर, हो निडर !! सुप्रभात। लक्ष्य पर हो नज़र, मन हो जिसका निडर, मंज़िलें उसकी हैं... पेश है एक नई कविता :: सामने जब हो डगर, मन पर हो विजय गर, लक्ष्य पर हो नजर,