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पर फर्क इतना पड़ा है कि अब अध्यापक अध्यापन कम और रा

पर फर्क इतना पड़ा है कि अब अध्यापक अध्यापन कम और राजनीति ज़्यादा करते है,
नैतिकता को चढ़ा सूली पर चढ़ा छात्रों की बेबसी पर हसते है।
खुद को संघर्षो का मसीहा बताते है,
पर छात्रों के लिए संघर्ष से मुखरते है।।

ये सच है, ये भारद्वाज की डगरी है,
साहब ये छात्रों और अध्यापको की नगरी है।
महान ऋषियों के तपो की भूमि है,
इस मिट्टी पर शहीदों ने शहादत चूमि है।।

अध्यापक एक शब्द नही व्यवसाय नही है किंचित भी,
देख पतन समाज का क्या है ज़रा सा आप चिंतित भी?
एक गुरु ही तो देश के भविष्य का निर्माता कहाता है,
अपने ज्ञान के सूक्ष्म गुणो से देश को युगों युगों का ऋणी कर जाता है।।

ये सरस्वती की नगरी आप अध्यापको से ही थी,
ये विद्वानों की भूमि उसी ऋषि परंपरा से ही थी।
आन है आपको अपने फ़र्ज़ की फर्जी में फ़ज़ीहत न करवाना आप,
यदि कलंकित ही करना है प्रयाग, तो भूमि छोड़ जाना आप।।

झूठे आदर्शो की बुनियादों पर सपनो के महल बनाते है,
खुद हो चुके है भ्रष्ट और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते है।
लालच की गंदी बिसात पर भविष्य फांसा करते है,
टिक-टिकिया पर निगाह गड़ाए ये आया-जाया करते है।।

जो मर्यादा की मर्यादा में रहना सिखलाते है,
और आशीष से राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते है।
मर्यादित बोल, मर्यादित भाव और राष्ट्र भाव अब कौन जगायेगा?
क्या शिक्षक धर्म सीखाने फिरसे कोई शांतिदूत कुरुक्षेत्र में आएगा? non-quality education and teachers
पर फर्क इतना पड़ा है कि अब अध्यापक अध्यापन कम और राजनीति ज़्यादा करते है,
नैतिकता को चढ़ा सूली पर चढ़ा छात्रों की बेबसी पर हसते है।
खुद को संघर्षो का मसीहा बताते है,
पर छात्रों के लिए संघर्ष से मुखरते है।।

ये सच है, ये भारद्वाज की डगरी है,
साहब ये छात्रों और अध्यापको की नगरी है।
महान ऋषियों के तपो की भूमि है,
इस मिट्टी पर शहीदों ने शहादत चूमि है।।

अध्यापक एक शब्द नही व्यवसाय नही है किंचित भी,
देख पतन समाज का क्या है ज़रा सा आप चिंतित भी?
एक गुरु ही तो देश के भविष्य का निर्माता कहाता है,
अपने ज्ञान के सूक्ष्म गुणो से देश को युगों युगों का ऋणी कर जाता है।।

ये सरस्वती की नगरी आप अध्यापको से ही थी,
ये विद्वानों की भूमि उसी ऋषि परंपरा से ही थी।
आन है आपको अपने फ़र्ज़ की फर्जी में फ़ज़ीहत न करवाना आप,
यदि कलंकित ही करना है प्रयाग, तो भूमि छोड़ जाना आप।।

झूठे आदर्शो की बुनियादों पर सपनो के महल बनाते है,
खुद हो चुके है भ्रष्ट और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते है।
लालच की गंदी बिसात पर भविष्य फांसा करते है,
टिक-टिकिया पर निगाह गड़ाए ये आया-जाया करते है।।

जो मर्यादा की मर्यादा में रहना सिखलाते है,
और आशीष से राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते है।
मर्यादित बोल, मर्यादित भाव और राष्ट्र भाव अब कौन जगायेगा?
क्या शिक्षक धर्म सीखाने फिरसे कोई शांतिदूत कुरुक्षेत्र में आएगा? non-quality education and teachers

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