मैं आईने से गुरेज करते हूए पहाड़ों की कोख में साँस लेने बाली उदास झीलों में अपने चेहरे का अक्स देखूँ तो सोचता हूँ की मुझमे ऐसा भी क्या है बाबरी तुम्हारी एक मोहब्बत ज़मीन पे फैले हूए समंदर की वो सतो से भी ज्यादा है मोहब्बतों के समंदरों में बस एक रस्म ए जुदाई है जो बुरी है बाबरी खला नवरदो को जो सितारे मुआबजे में मिले थे वो उनकी रोशनी में सोचते हैं कि। वक़्त ही तो खुदा है बाबरी और इस ताल्लुक की गठरियो में रुकी हुई साहतो से हठकर मेरे लिए और क्या है बाबरी अभी बहुत वक़्त है कि हम वक़्त दे एक दूसरे को मगर हम एक साथ रहकर भी खुश न रह सके तो माफ करना कि मैने बचपन ही दुख की दहलीज़ पर गुजारा है मैं उन चिरागों का दुख हूँ जिनकी लव रात के इंतज़ार में बुझ गई मगर उनसे उठने बाला धुआँ जमान ओ मकान में फैला हुआ है अबतक मैं कोसारो और उनके जिस्मों से बहने बाले उन झरनो का दुख हूँ जिनको ज़मीन के चेहरों पर रेंगते रेंगते ज़माने गुजर गए हैं जो लोग दिल से उतर गए हैं किताबें आँखों पर रखकर सोए थे मर गए हैं मैं उनका दुख हूँ जो जिस्म खुद लज्जित से उकता के आईनों की तसल्लियों में पले बड़े हैं मैं उनका दुख हूँ मैं घर से भागे हुओ का दुख हूँ मैं रात को जागे हुओ का दुख हूँ मैं लापता लड़कियों का दुख हूँ डूबी हुई इज्जत का दुख हूँ मैं अफाइज़ो का दुख हूँ मिटी हुई तख्तियों का दुख हूँ थके हूए बादलों का दुख हूँ जले हुए जंगलों का दुख हूँ दिल में ठहरी हुई बात का दुख हूँ मैं गुजरे हुओ का दुख हूँ जो खुल कर बरसी नही है मैं उस घटा का दुख हूँ ज़मीन का दुख हूँ बला का दुख हूँ खुदा का दुख हूँ अधुरी मोहब्बत का दुख हूँ तन्हाई का दुख हूँ जो शाख सावन में फूटती है वो शाख तुम हो जो पिंग बारिश के बाद बन बन के टूटती है वो पिंग तुम हो तुम्हारे होठों से साहतो ने समाअतो का सबक लिया है तुम्हारी ही सा के संदली से समंदरों ने नमक लिया है तुम्हारा मेरा मामला ही जुदा है बाबरी तुम्हें तो सब पता है।। ##ईशान ब नज्म✍ ©Esha mahi